Monday 23 February 2015

मौन


तुम शब्दों में
ढूंढते रहे भावनाएँ
मैं मौन बाँचती रही

मौन ही गूढ़
मौन ही शाश्वत
मौन ही तो है सबसे मुखर
चुक जाते हैं शब्द अक्सर
बन जाते हैं पंगु
असमर्थ रह जाते
करने में वहन  भावनाएँ |
तब चारों ओर पसरा यह मौन ही
हो उठता है मुखर
बोलता, चीखता, गाता, गुनगुनाता है|
अपनी अदृश्य कलम से
हर भाव चेहरे पर लिख जाता है |
बस, कुछ पल तो बैठो पास
पढ़ो, इस मौन को मेरे
जान पाओगे भाव
छिपे.... गूढ़ अंतस में कहीं
क्यों चाहते कि कर दूँ व्यक्त
शब्दों में


1 comment:

  1. बहुत खुबसूरत, संदेशात्मक, प्रेरक रचना...

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