Sunday 18 March 2018

बात अब लंबी चलेगी

रात है, जाम है, बात अब लंबी चलेगी।
घूँट दर घूँट सरकेगी, शब धीरे ढलेगी।

अपने अश्कों में तर होके सीलेगी आतिश,
पिघलता दिल रहेगा, देर तक शम्मा जलेगी।

नींद, उम्मीद, ख्वाबों से हुई वीरान अब ये,
ता-उमर लंबी शब है, भला कैसे कटेगी।

जो खिंची होती काग़ज़ पे तो मिट भी जाती,
खिंच गई जो दिलों पर, लकीर कैसे मिटेगी।

बाँध बाँधे थे, सैलाब पर, रुकने न पाया,
दर्द बरसा है फिर अश्क़ की नदिया बहेगी।

तीर, तलवार, खंजर, भला क्या चोट देंगे,
तल्ख़ है ग़र ज़ुबाँ, सीधी जा दिल में चुभेगी।

लड़ रहे पेंच नैनों के, दिल दाँव पर है,
जाने किसकी पतंग दिल की कन्नों से कटेगी।

कायदा समझते तुमको भी, ग़र फायदा होता,
उम्र नादान है, बात क्या पल्ले पड़ेगी।

1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जल बिना जीवन नहीं : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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